अभिव्यक्ति और माध्यम |abivakti aur madhyam class 11th&12th syllabus

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Class 11th and 12th Hindi - अभिव्यक्ति और माध्यम

जनसंचार माध्यम

पत्रकारिता के विविध आयाम

विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

कैसे बनती है कविता

नाटक लिखने का व्याकरण

कैसे लिखें कहानी

डायरी लिखने की कला

कथा-पटकथा

कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

कैसे बनता है रेडियो नाटक

नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया

स्ववृत्त लेखन और रोजगार संबंधी आवेदन पत्र

शब्दकोश: संदर्भ ग्रंथों की उपयोगी विधि और परिचय







पाठ-1

विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन


मुख्य बिन्दु

जनसमाज द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले जन संचार के अनेक माध्यम हैं जैसे - मुद्रित (प्रिंट), रेडियो, टेलीविजन एवं इंटरनेट। मुदित अर्थात् समाचार पत्र-पत्रिकाएँ पदने के लिए, रेडियो सुनने के लिए. टी.वी. देखने व सुनने के लिए तथा इंटरनेट पढ़ने, सुनने व देखने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इन माध्यमों के प्रयोग करने का आधार लोगों की रूपि, माध्या की उपयुक्तता और उपयोगिता पर निर्भर करता है। यही कारण है कि नए माध्यमों के आ जाने पर भी इनका महत्व कम नहीं होता, बल्कि सभी माध्यम प्रयुक्त होते हैं।

2.जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में मुद्रित (प्रिंट) माध्यम सबसे पुराना, माध्यम है जिसके अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ आती हैं। मुद्रण का प्रारंभ चीन में हुआ। तत्पश्चात् जर्मनी के गुटेनबर्ग ने छापाखाना की खोज की। पाररा में सन् 1556 में, गोवा में पहला छापाखाना खुला जिसका प्रयोग मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तके छापने के लिए किया था। आज मुद्रण कप्यूटर की सहायता से होता है।

• मुद्रित माध्यम की खूबियाँ (विशेषताएँ) देखें तो हम पाएंगे कि लिखे हुए शब्द स्थायी होते हैं। इन लिखे हुए शब्दों को हम एक बार ही नहीं, समझ न आने पर कई बार पढ़ सकते हैं और उन पर चिंतन-मनन करके संतुष्ट भी हो सकते हैं। जटिल शब्द आने पर शब्दकोश का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त किसी भी सचर को अपनी रूचि के अनुसार पहले अथवा बाद में पड़ सकते है। चाहे तो किसी भी सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं।

मुद्रित माध्यम को खामियाँ (कमियों) - निरक्षरों (अशिक्षित लोगों) के लिए अनुपयोगी, टी.वी. तथा रेडियो की भांति मुद्रित माध्यम तुरंत पटी पटनाओं की जानकारी नहीं दे पाता। समाचार पत्र निश्चित अवधि अर्थात् 24 घंटे में एक बार, साप्ताहिक सप्ताह में एक बार तथा मासिक मास में एक बार प्रकाशित होता है। किसी भी खबर अथवा रिपोर्ट के प्रकाशन के लिए एक डेडलाइन (निश्चित समय सीमा) होती हैं। स्पेस (स्थान) सीमा भी होती है। महत्व एवं जगह को उपलब्धता के अनुसार ही किसी भी खबर को स्थान दिया जाता है। मुद्रित माध्यम में अशुद्धि होने पर, सुधार हेतु अगले अंक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

मुद्रित माध्यम में लेखन के लिए भाषा, व्याकरण, शैली, वर्तनी, समय-सीमा, आबाँटत स्थान, अशुद्धि शोधन एवं तारतम्यता पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।

रेडियो : रेडियों जनसंचार का श्रव्य माध्यम है जिसमें ध्वनि, शब्द और स्वर ही प्रमुख है। रेडियो मूलतः एक रेखीय (लीनियर) माध्यम है। रेडियो समाचार को संरचना समाचार पत्रों तथा टी.बी. की तरह पिरामिट शैली आधारित होती है। समाचार लेखन की ये शैली सर्वाधिक प्रचलित, प्रभावी तथा लोकप्रिय शैली है। लगभग 90 फीसदी समाचार या स्टोरिज इसी शैली में लिखी जाती है।


उल्टा पिरामिड शैली : उल्टा पिरामिट शैली में समाचार पत्र के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सर्वप्रथम लिखा जाता है। उसके बाद पटते हुए महत्व क्रम में दूसरे तथ्यों या सूचनाओं को बताया जाता है अर्थात् कहानी की तरह क्लाइमैक्स अंत में नहीं वरन् खबर के आरंभ में आ जाता है। इस शैली के अंतर्गत समाचारों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो. बॉडी, समापन।

1. इंट्रो : समाचार का मुख्य भाग

2. बॉडी : घटते क्रम में खबर का विस्तृत ब्यौरा।

3. समापन : अधिक महत्त्वपूर्ण न होने पर अथवा स्पेस न होने पर इसे काटकर छोटा भी किया जा सकता है।









विशेषताएँ : देखने व सुनने की सुविधा, जीवंतता तुरन्त घटी घटनाओं की जानकारी, प्रभावशाली, समाचारों का लगातार प्रसारण।[www.boardjankari.com]

कमियाँ : भाषा शैली के स्तर पर अत्यंत सावधानी, बाइट का ध्यान रखना आवश्यक है, कार्यक्रम का सीधा प्रसरण कभी-कभी सामाजिक उत्तेजना को जन्म दे सकता है, अपरिपक्व बुद्धि पर सीधा प्रभाव।

रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा : भाषा के स्तर व गरिमा को बनाए रखते हुए सरल भाषा का प्रयोग करें ताकि सभी वर्ग तथा स्तर के लोगसमझ सकें। वाक्य छोटे-छोटे तथा सरल हों, वाक्यों में तारतम्यता हो। जटिल

शब्दों, सामासिक शब्दों एवं मुहावरों के अनावश्यक प्रयोग से बचें। सरल एवं आम बोलचाल की भाषा हो जिनमें विद्वता न झलके। ऐसी ही भाषा बोलचाल के निकट होती है।

पत्रकारिता लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया लोकतंत्र में अखबार एक पहरेदार और जनमत निर्माण का कार्य करते हैं। अखबार पाठकों को सूचना देने, जागरूक और शिक्षित बनाने, उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं। पत्रकार इस दायित्व की पूर्ति के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का प्रयोग करते हैं, इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

पत्रकारीय लेखन एवं सृजनात्मक लेखन एक दूसरे से भिन्न हैं

पत्रकारीय लेखन

सृजनात्मक लेखन

इसका संबंध समसामयिक और 1. इस लेखन में कल्पना को भी स्थान वास्तविक घटनाओं और मुद्दों से है।  दिया जाता है। यह अनिवार्य रूप से तात्कालिक और 2. इस लेखन में लेखक पर बंधन पाठकों की रूचियों और जरूरतों को नहीं होता उसे काफी छूट होती है। ध्यान में रखकर किया जाता है।

पत्रकारिता के विकास में जिज्ञासा का मूलभाव सक्रिय होता है। अच्छे लेखन की भाषा : सीधी, सरल एवं प्रभावी भाषा।

अच्छे लेखन के लिए ध्यान देने योग्य बातें : गूढ से गूढ विषय की प्रस्तुति

सरल, सहज और रोचक हो। विषय तथ्यों द्वारा पुष्ट हों, लेख उद्देश्यपूर्ण हों।

पत्रकार के प्रकार : 1. पूर्णकालिक : किसी समाचार संगठन के नियमित

वेतनभोगी।

2. अंशकालिक : एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाले।

3. फ्रीलांसर : स्वतंत्र पत्रकार जो भुगतान के आधार पर अलग अलग अखबारों के लिए लिखें।


फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना होता है।

फीचर तथा समाचार में अंतर।।[www.boardjankari.com]





अपने विचार व्यक्त करने की लेखक को पूर्ण छूट होती है। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि वे अपने लेखक के नाम से पहचाने जाते हैं।

संपादक के नाम पत्र : यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। यह अखबार का एक स्थायी स्तंभ है जिसके जरिए पाठक विभिन्न मुद्दों पर न सिर्फ अपनी राय प्रकट करता है अपितु जन समस्याओं को भी उठाता है।

लेख : संपादकीय पृष्ठ पर वरिष्ठ पत्रकार और विषय विशेषज्ञ किसी विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं। इसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है। किंतु इसमें लेखक तर्को एवं तथ्यों के जरिए 

समापन सबसे कम महत्वपूर्ण बात अपनी राय प्रस्तुत करता है।

साक्षात्कार : साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए न केवल ज्ञान अपितु संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।


पाठ संबंधी महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1 : फीचर से क्या अभिप्राय है? फीचर कितने प्रकार के होते हैं? इनकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर : फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आतमनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देना शिक्षित करना और मुख्य रूप से मनोरंजन करना होता है। फीचर कई प्रकार के होते हैं जिनमें मुख्य हैं-

समाचार बैकग्राउंड फीचर

. रूपात्मक फीचर

. खोजपरक फीचर

. व्यक्तिचित्र फीचर

. साक्षात्कार फीचर

. यात्रा फीचर

जीवनशैली फीचर

. विशेषकार्य फीचा

फीचर की विशेषताएँ: फीचर की शैली कथात्मक शैली की 165/250 आकार रिपोर्ट से बड़ा होता है। एक अच्छे से रोचक फीचर के साथ फोटा, रेखांकन या ग्राफिक्स का होना अनिवार्य है। फीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। फीचर बोझिल नहीं होते।

प्रश्न 2 : विशेष रिपोर्ट से आप क्या समझते हैं? विशेष रिपोर्ट कितने प्रकार की होती है?


सर फौचर, जीवन शैली फीचर, रूपात्मक फीचर, व्यक्तित्व चरित्र फीचर, यात्रा फीचर आदि।

विशेष रिपोर्ट : समाचार पत्र और पत्रिकाओं में गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर जो रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है उसे विशेष रिपोर्ट कहते हैं।

विशेष रिपोर्ट के प्रकार

1. खोजी रिपोर्ट - पत्रकार ऐसी सूचनाओं और तथ्यों को छानबीन कर जनता के समक्ष लाता है जो पहले सार्वजनिक न हो।

2. इन डेप्थ रिपोर्ट - सार्वजनिक रूप से प्राप्त तथ्यों सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन कर महत्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाया जाता हैं

3. विश्लेषणात्मक रिपोर्ट - घटना या समस्या से जुड़े तथ्यों का विश्लेषण और व्याख्या की जाती है

4. विवरणात्मक रिपोर्ट - समस्या का विस्तृत विवरण दिया जाता है। आमतौर पर विशेष रिपोर्ट को उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है लेकिन विषयानुसार रिपोर्ट में फीचर शैली का भी प्रयोग होता है इसे फीचर रिपोर्ट कहते हैं।

विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए।

विचारपरक लेखन : अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय अग्रलेख, टिप्पणियां विचारपरक लेखन में आते हैं। संपादकीय संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है क्योंकि संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष के विचार नहीं होते। संपादकीय का दायित्व संपादक और उसके सहयोगियों पर होता है इसलिए इसके नीचे किसी का नाम नहीं होता। संपादकीय के जरिए अखबार किसी घटना या मुद्दे पर अपनी राय प्रकट करता है।

स्तंभ लेखन : कुछ लेखक अपने वैचारिक रूझान और लेखन शैली के लिए पहचाने जाते हैं। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता देखकर समाचार पत्र उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा देता है। स्तंभ का विषय चुनने एवं उसमें

प्रश्न 1: जनसंचार के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं?।[www.boardjankari.com]

उत्तर : प्रिंट (मुदित) माध्यम, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट।

प्रश्न 2 : जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम कौन सा है?

उत्तर : प्रिंट (मुद्रित) माध्यमा

प्रश्न : सर्वप्रथम मुद्रण का प्रारंभ कहाँ से हुआ?

उत्तर : सर्वप्रथम मुद्रण का प्रारंभ चीन से हुआ।

प्रश्न 4: भारत में पहले छापेखाने की स्थापना किसने, कब और कहाँ की?

उत्तर : भारत में पहले छापेखाने की स्थापना जर्मनी के गुटेनबर्ग ने सन् 1556 में, गोमा में की।

प्रश्न 5 : उलटा पिरामिड शैली से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : उलया पिरामिड शैली में समाचार को तीन हिस्सों में बाँटा जाता है। 1. इंट्रो (मुखड़ा).[खबर का मुख्य हिस्सा] 2 बॉडी - (घटसे महत्वक्रम में समाचार लिखना), 3. समापन (प्रासंगिक तथ्य तथा सूचनाएँ)


विशेष लेखन - स्वरूप और प्रकार



मीट कवर करने वाले रिपोर्टर को 2. विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाता कहते हैं। रिपोर्टर को विशेष संवाददाता कहते हैं। विशेष लेखन के अंतर्गत रिपोर्टिंग के अलावा विषय विशेष पर फीचर, टिप्पणी, साक्षारत्कार, लेख, समीक्षा और स्तंभ भी आते हैं।।[www.boardjankari.com]

पत्र पत्रिकाओं को विशेष लेख लिखने वाले सामान्यत: पेशेवर पत्रकार न होकर विषय विशेषज्ञ होते है। जैसे खेल के क्षेत्र में हर्षा भोगले, जसदेव सिंह और नरोत्तम पुरी आदि प्रसिद्ध है।

विशेष लेखन की भाषा शैली । विशेष लेखन में हर क्षेत्र की विशेष तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

1. कारोबार और व्यापार में तेजदिए. सोना उछला, चाँदी लुदकी आदि।

2. पर्यावरण संबंधित लेख में आद्रता, टाक्सिक कचरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि।

विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। विषयानुसार उल्टा पिरामिड या फीचर शैली का प्रयोग हो सकता है। पत्रकार चाहे कोई भी शैली अपनाएँ लेकिन उसे यह ध्यान में रखना होता है कि खास विषय में लिखा गया आलेख सामान्य से अलग होना चाहिए।

विशेषज्ञता का अभिप्राय : विशेषज्ञता का अर्थ है कि व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित न होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना कि सूचनाओं की सहजता से व्याख्या कर पाठकों को उसके मायने समझा सके। विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए स्वयं का अपडेट रहना, पुस्तके पढ़ना, शब्दकोष आदि का सहारा लेना, सरकारी-गैरसरकारी संगठनों से संपर्क रखना,निरंतर दिलचस्पी और सक्रियता आवश्यक है। कुछ वर्षों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण रूप से उभरने वाली पत्रकारिता-आर्थिक पत्रकारिता है क्योंकि देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच रिश्ता गहराहुआ है। आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की तुलना में काफी जटिल होती है क्योंकि लोगों को इसकी शब्दावली का मतलब नहीं पता होता।


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पाठ-4

सृजनात्मक लेखन


'कैसे बनती है कविता'।[www.boardjankari.com]

कविता इंसान के मन को अभिव्यक्त करने वाली सबसे पुरानी कला है। मौखिक युग में कविता के द्वारा इसान ने अपने भायों को दूसरे तक पहुंचाया होगा। इससे स्पष्ट होता है कि कविता मन में उमड़ने-घुमड़ने वाले भावों और विचारों को अभिव्यका करने का काव्यात्मक माध्यम है। खाचिक परंपरा में जन्मी कविता आज लिखित रूप में मौजूद है। पारंपरिक लोरियों, मांगलिक गीतों, श्रमिकों द्वारा गुनगुनाए लोकगीतों और तुकथंदी में कविता के स्वर मुखरित होते हैं। कविता को आज तक किसी एक परिभाषा में बांध पाना सम्भव नहीं हो पाया है। अनेक प्राचीन काव्यशास्त्रीयों और पश्चिमी विद्वानों ने कविता की अनेक परिभाषाएँ दी है। जैसे शब्द और अर्थ का संयोग, रसयुका वाक्य, संगीतमय विचार आदि। कविता लेखन के संबंध में दो मत मिलते हैं। एक का मानना है कि अन्य कलाओं के समान कविता लेखन की कला को प्रशिक्षण द्वारा नहीं सिखाया जा सकता क्योंकि इसका संबंध मानवीय भावों से है जबकि दूसरा मत कहता है कि अन्य कलाओं की भांति प्रशिक्षण के द्वारा कविता लेखन को भी सरल बनाया जा सकता है।

कविता का पहला उपकरण शब्द है। कवि डल्ल्यू एच ऑर्डन ने कहा कि 'प्ले विद द बड्स' अर्थात् कविता लेखन में सबसे पहले शब्दों से खेलना सीखें, उनके अर्थ की परतों को खोलें क्योंकि शब्द ही भावनाओं और संवेदनाओं को आकार देते है।

विध और छद (आंतरिक लय) कविता को इंद्रियों से पकड़ने में सहायक होते है। बाह्य संवेदनाएँ मन के स्तर पर बिंब के रूप में परिवर्तित हो जाती है। छद्र के अनुशासन की जानकारी के बिना आंतरिक लय का निर्वाह असंभव है।


.कविता के मुख्य घटक (तत्व)

1. भाषा का सम्यक ज्ञान

2. शब्द विन्यास

3. छंद विषयक बुनियादी जानकारी

4. अनुभव और कल्पना का सामंजस्य

5. सहज समप्रेषण शक्ति

6. भाव एवं विचार की अनुभूति

. नवीन दृष्टिकोण और प्रस्तुतीकरण की कला न हो तो कविता लेखन संभव ही नहीं है। प्रतिभा को किसी नियम या सिद्धांत द्वारा पैदा नहीं किया जा सकता, किन्तु परिश्रम और अभ्यास से विकसित किया जा सकता है। कवित लेखन के ये घटक कविता लेखन भले ही न सिखाएँ पर कविता की सराहना एवं कविता विषयक ज्ञान देने में सहायक है।।[www.boardjankari.com]

अभ्यास कार्य

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: कविता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : कविता मन में उमड़ने-घुमड़ने वाले भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने का काव्यात्मक माध्यम है।

प्रश्न 2: 'कविता लेखन' का सबसे पहला उपकरण किसे माना जाता है?

उत्तर : 'कविता लेखन' का सबसे पहला उपकरण 'शब्द' को माना जाता है।

प्रश्न 3 : 'प्ले विद द वर्डस' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : 'प्ले विद द वर्ड्स' से यह अभिप्राय है कि कविता लेखन में सबसे पहले शब्दों से खेलना सीखें व उनके अर्थ की परतों को खोलें।

प्रश्न 4: कविता के लिए आवश्यक कोई दो घटक बताइए।

उत्तर : कविता के लिए आवश्यक प्रमुख घटकों में से दो घटक हैं।

 1. भाषा का सम्यक ज्ञान,

 2. शब्द विन्यास।

अभिव्यक्ति और माध्यम बुक

अभिव्यक्ति और माध्यम क्लास 12

अभिव्यक्ति और माध्यम Class 11

अभिव्यक्ति और माध्यम के प्रश्न उत्तर PDF

अभिव्यक्ति और माध्यम MCQ

अभिव्यक्ति और माध्यम के प्रश्न उत्तर पाठ 14

अभिव्यक्ति और माध्यम के प्रश्न उत्तर Class 12

अभिव्यक्ति और माध्यम क्लास 12 MCQ pdf

पाठ-5

नाटक लिखने का व्याकरण

पाठ परिचय :  नाटक एक दृश्य विद्या है। इसे हम अन्य गद्य विधाओं से इसलिए अलग भी मानते हैं, क्योंकि नाटक भी कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध आदि की तरह साहित्य के अन्तर्गत ही आता है। पर यह अन्य विधाओं से इसलिए अलग है क्योंकि वह अपने लिखित रूप से दृश्यता की ओर बढ़ता है। नाटक केवल अन्य विधाओं की भांति केवल एक आयामी नहीं है। नाटक का जब तक मंचन नहीं होता तब तक वह सम्पूर्ण रूप व सफल रूप में प्राप्त नहीं करता है। अतः कहा जा सकता है कि नाटक को केवल पाठक वर्ग नहीं दर्शक वर्ग भी प्राप्त है। साहित्य की अन्य विधाएँ पढ़ने या फिर सुनने तक की यात्रा करती है, परंतु नाटक पढ़ने, सुनने और देखने के गुण को अपने भीतर रखता है।।[www.boardjankari.com]

नाटक के प्रमुख तत्व या अंग घटक इस प्रकार हैं :

1. समय का बंधन

 2. शब्द,

 3. कथ्य, 

4. संवाद,

 5. द्वंद (प्रतिरोध)

.6. चरित्र योजना,

7. भाषा शिल्प,

 8. ध्वनि योजना,

 9. प्रकाश योजना, 

10. वेषभूषा, 

11. रंगमंचीयता।

प्रश्न 2 : "समय के बंधन' का नाटक में क्या महत्व है?

उत्तर : नाट्य विधा में 'समय के बंधन' का विशेष महत्व है। नाटककार को 'समय के बंधन' का अपने नाटक में विशेष ध्यान रखना होता है और इस बात का नाटक की रचना पर भी पूरा प्रभाव पड़ता है। नाटक को शुरु से अन्त तक एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा होना होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो नाटक से प्राप्त होने वाला रस, कौतुहल आदि प्राप्त नहीं हो पाता है। नाटक का मंथन हम धारावाहिक के रूप में नहीं दिखा सकते हैं। नाटककार

चाहे अपनी किसी भूतकालीन रचना को ले या किसी अन्य लेखक की रचना को चाहे वह भविष्यकाल की हो, वह दोनों परिस्थितियों में नाटक का मंचन वर्तमान काल में ही करेगा। इसीलिए नाटक के मंचीय निर्देश हमेशा वर्तमान काल में लिखे जाते हैं। क्योंकि नाटक का कभी भी मंचन हो वह वर्तमान काल में ही घटित होगा। या खेला जाएगा। इसके साथ-साथ ही नाटक के प्रायः तीन अंक होते हैं, प्रारंभ, मध्य, समापन। अत: इन अंकों को ध्यान में रखते हुए भी नाटक को समय के सीमा में बांटना जरूरी हो जाता है।


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