12th hindi half yearly paper solution pdf| 12वी हिन्दी अर्धवार्षिक परीक्षा 2021

12th hindi half yearly paper solution pdf| 12वी हिन्दी अर्धवार्षिक परीक्षा 2021



Half yearly paper class 12th hindi paper solution - हैलो दोस्तों आप सभी का स्वागत है हमारी वेबसाइट  में और आज के इस नयी पोस्ट में हम 12वी अर्धवार्षिक परीक्षा 2021की तैयारी करेंगे और आप हमारी वेबसाइट  के माध्यम से कक्षा-12वीं के सभी विषय की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी भी कर सकते हैं आपको हमारी वेबसाइट के माध्यम से सभी विषयों के महत्वपूर्ण प्रश्न और इनके उत्तर प्रदान किए जाएंगे 


परीक्षा में अच्छे अंक पास करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें-

1. लेख एवं वर्तनी की शुद्धता तथा वाक्य-गठन पर ध्यान दें।

2. हर पाठ का सार.पृष्ठभूमि,विषयवस्तु तथाकथानक को समझना आवश्यक है। अत:विद्यार्थी हर पाठ

का सारांश भलीभांति याद कर लें।

3. प्रश्नों को ध्यान से पढ़े तदनुसार अपेक्षित उत्तर लिखें।

4. उत्तर लिखते समय संबंधित मुख्य बिंदुओं का शीर्षकबनाते हुए उत्तर लिखें, यथा-तीन अंक के प्रश्नों

के उत्तर लिखते समय कम से कम तीन मुख्य उत्तर-बिंदुओं का उल्लेख करते हुए उत्तर स्पष्ट करें।

5. अंक-योजना के अनुसार निर्धारित शब्द-सीमा के अंतर्गत उत्तर लिखें परीक्षार्थी कई बार एक अंक

के प्रश्न का उत्तर बहुत लंबा, कई बार पूरा पृष्ठ लिख देते हैं जो समय और ऊर्जा की बर्बादी है।

6. ध्यान रहे कि अधिक लिखने से अच्छे अंक नहीं आते बल्कि सरल-सुबोध भाषा में लिखे गए

सटीक उत्तर, सारगर्मित तथ्य तथा उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किए गए उत्तर प्रभावशाली होते हैं।


पाठ।।-भक्तिन

लेखिका-महादेवी वर्मा

पाठ का सारांश-भक्तिन जिसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था,लेखिका महादेवी वर्मा की सेविका है। बचपन

में ही भक्तिन की माँ की मृत्यु हो गयी सौतेली माँ ने पाँच वर्ष की आयु में विवाह तथा नौ वर्ष की आयु में

गौना कर भक्तिन को ससुराल भेज दिया ससुराल में भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण

उसे सास और जिठानियों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी और

भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पड़ता था भक्तिन का पति उसे

बहुत चाहता था। अपने पति के स्नेह के बल पर भक्तिन ने ससुराल वालों से अलगौझा कर अपना अलग घर

बसा लिया और सुख से रहने लगी, पर भक्तिन का दुर्भाग्य, अल्पायु में ही उसके पति की मृत्यु हो गई।

ससुराल वाले भक्तिन की दूसरी शादी कर उसे घर से निकालकर उसकी संपति हड़पने की साजिश करने

लगे ऐसी परिस्थिति में भक्तिन ने अपने केश मुंडा लिए और संन्यासिन बन गई । भक्तिन स्वाभिमानी,

संघर्षशील, कर्मठ और दृढ संकल्प वाली स्त्री है जो पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छल-कपट से भरे समाज

में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती है।घर गृहस्थी संभालने के लिए अपनी बड़ी बेटी


पाठ आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1-अक्तिन का वास्तविक नाम क्या था, वह अपने नाम को क्यों छुपाना चाहती थी?

उत्तर-भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी या, हिन्दुओं के अनुसारलक्ष्मी धन की देवीहै। चूंकि भक्तिन गरीब

थी उसके वास्तविक नाम के अर्य और उसके जीवन के यथार्य में विरोधाभास है. निर्धन भक्तिन सबको

अपना असली नाम लक्ष्मी बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इसलिए वह अपना असली नाम

छुपाती थी।


प्रश्न :- लेखिका ने लक्ष्मी का नाम भक्तिन क्यों रखा?

उतर-घुटा हुआ सिर, गले में कंठी माला और भक्तों की तरह सादगीपूर्ण वेशभूषा देखकर महादेवी वर्मा ने

लक्ष्मी का नाम भक्तिन रख दिया। यह नाम उसके व्यक्तित्व से पूर्णत: मेल खाता था।

प्रश्न 3-अक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों में विभाजित किया गया है।

उत्तर- भक्तिन के जीवन को चार भागों में बाँटा गया है-

• पहला परिच्छेद-भक्तिन का बचपन, माँ की मृत्यु, विमाता के द्वारा भक्तिन का बाल-विवाह करा देना

.

• द्वितीय परिच्छेद-भक्तिन का वैवाहिक जीवन, सास तथा जिठानियों का अन्यायपूर्ण व्यवहार,

परिवार से अलगौझा कर लेना।

तृतीय परिच्छेद- पति की मृत्यु, विधवा के रूप में संघर्षशील जीवन।

• चतुर्थ परिच्छेद- महादेवी वर्मा की सेविका के रूप में।


प्रश्न 4 भक्तिन पाठ के आधार पर भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में किये जाने वाले भेदभाव

का उल्लेख कीजिए।

भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में भेदभाव किया जाता है। लड़कियों को खोटा सिक्का या

पराया धन माना जाता है। भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण उसे सास और जिठानियों की

उपेक्षा सहनी पड़ती थी सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी क्योंकि उन्होंने लड़के पैदा किए थे और

भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पड़ता था भक्तिन और उसकी

बेटियों को रूखा-सूखा मोटा अनाज खाने को मिलता था जबकि उसकी जिठानियाँ और उनके काले कलूटे

बेटे दूध-मलाई राब-चावल की दावत उड़ाते थे


प्रश्न 5-भक्तिन पाठ के आधार पर पंचायत के न्याय पर टिप्पणी कीजिए।

भक्तिन की बेटी के सन्दर्भ में पंचायत द्वारा किया गया न्याय, तर्कहीन और अंधे कानून पर आधारितहै।

भक्तिन के जिठौत ने संपति के लालच में षडयंत्र कर भोली बच्ची को धोखे से जाल में फंसाया। पंचायत ने

निर्दोष लड़की की कोई बात नहीं सुनी और एक तरफा फैसला देकर उसका विवाह जबरदस्ती जिठौत के

निकम्मे तीतरबाज साले से कर दिया। पंचायत के अंधे कानून से दुष्टों को लाभ हुआ और निर्दोष को दंड

मिला।


प्रश्न 6-भक्तिन की पाक-कला के बारे में टिप्पणी कीजिए।

भक्तिन को ठेठ देहाती, सादा भोजन पसंद था | रसोई में वह पाक छूत को बहुत महत्त्व देती थी | सुबह-सवेरे

नहा-धोकर चौके की सफाई करके वह द्वार पर कोयले की मोटी रेखा खींच देती थी किसी को रसोईघर में

प्रवेश करने नहीं देती थी उसे अपने बनाए भोजन पर बड़ा अभिमान था वह अपने बनाए भोजन का

तिरस्कार नहीं सह सकती थी।


प्रश्न 7- सिद्ध कीजिए कि भक्तिन तर्क-वितर्क करने में माहिर थी।

भक्तिन तर्कपटु थी | केश मुंडाने से मना किए जाने पर वह शास्त्रों का हवाला देते हुए कहती है 'तीरथ गए

मुँडाए सिद्ध' | घर में इधर-उधर रखे गए पैसों को वह चुपचाप उठा कर छुपा लेती है, टोके जानेपर वह वह

इसे चोरी नही मानती बल्कि वह इसे अपने घर में पड़े पैसों को सँभालकर रखना कहती है। पढाई-लिखाई से

बचने के लिए भी वह अचूक तर्क देती है कि अगर मैं भी पढ़ने लगूं तो घर का काम कौन देखेगा?


प्रश्न 8-भक्तिन का दुर्भाग्य भी कम हठी नही था, लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर- भक्तिन का दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ता था-

1. बचपन में ही मों की मृत्यु ।

2. विमाता की उपेक्षा।

3. भक्तिन(लक्ष्मी) का बालविवाह ।

4. पिता का निधन।

5. तीन-तीन बेटियों को जन्म देने के कारण सास और जिठानियों के द्वारा भक्तिन की उपेक्षा।

6- पति की असमय मृत्यु ।

7. दामाद का निधन और पंचायत के द्वारा निकम्मे तीतरबाज युवक से भक्तिन की विधवा बेटी का

जबरन विवाह।

8- लगान न चुका पाने पर जमींदार के द्वारा भक्तिन का अपमान।


प्रश्न 9-भक्तिन ने महादेवी वर्मा के जीवन पर कैसे प्रभावित किया?

उत्तर- भक्तिन के साथ रहकर महादेवी की जीवन-शैली सरल हो गयी, वे अपनी सुविधाओं की चाह को

छिपाने लगीं और असुविधाओं को सहने लगीं। भक्तिन ने उन्हें देहाती भोजन खिलाकर उनका स्वाद बदल

दिया। भक्तिन मात्र एक सेविका न होकर महादेवी की अभिभावक और आत्मीय बन गयी|भक्तिन,महादेवी

के जीवन पर छा जाने वाली एक ऐसी सेविका है जिसे लेखिका नहीं खोना चाहती।


प्रश्न 10-भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-महादेवी वर्मा की सेविका भक्तिन के व्यक्तित्व की विशेषताएं निम्नांकित हैं-

समर्पित सेविका

स्वाभिमानी

तर्कशीला

परिश्रमी

संघर्षशील


प्रश्न 11-भक्तिन के दुर्गुणों का उल्लेख करें।

उत्तर- गुणों के साथ-साथ भक्तिन के व्यक्तित्व में अनेक दुर्गुण भी निहित है-

1. वह घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को भंडार घर की मटकी में छुपा देती है और अपने इस कार्य को

चोरी नहीं मानती।

2. महादेवी के क्रोध से बचने के लिए भक्तिन बात को इधर-उधर करके बताने को झूठ नही मानती।

अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए वह तर्क-वितर्क भी करती है।

3. वह दूसरों को अपनी इच्छानुसार बदल देना चाहती है पर स्वयं बिलकुल नही बदलती।


प्रश्न 12 निम्नांकित भाषा-प्रयोगों का अर्थ स्पष्ट कीजिए.

.

पहली कन्या के दो और संस्करण कर डाले-भक्तिन ने अपनी पहली कन्या के बाद उसके जैसी दो

और कन्याएँ पैदा कर दी अर्थात भक्तिन के एक के बाद एक तीन बेटियों पैदा हो गयी।

• खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पनी-आज भी अशिक्षित ग्रामीण समाज में बेटियों को खोटा

सिक्का कहा जाता है। भक्तिन ने एक के बाद एक तीन बेटियों पैदा कर दी इसलिए उसे खोटे सिक्के

को ढालने वाली मशीन कहा गया।


प्रश्न 13-भक्तिन पाठ में लेखिका ने समाज की किन समस्याओं का उल्लेख किया है?

उत्तर- भक्तिन पाठ के माध्यम से लेखिका ने भारतीय ग्रामीण समाज की अनेक समस्याओं का उल्लेख

किया है-

1. लड़के-लड़कियों में किया जाने वाला भेदभाव

2. विधवाओं की समस्या

3. न्याय के नाम पर पंचायतों के द्वारा स्त्रियों के मानवाधिकार को कुचलना

4 अशिक्षा और अंधविश्वास


गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर


परिवार और परिस्थितियों के कारण स्वभाव में जो विषमताएँ उत्पन्न हो गई हैं, उनके भीतर से एक स्नेह

और सहानुभूति की आभा फूटती रहती है, इसी से उसके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति उसमें जीवन की सहज

मार्मिकता ही पाते हैं। छात्रावास की बालिकाओं में से कोई अपनी चाय बनवाने के लिए देहली पर बैठी रहती

हैं, कोई बाहर खडी मेरे लिए नाश्ते को चखकर उसके स्वाद की विवेचना करती रहती है। मेरे बाहर निकलते

ही सब चिड़ियों के समान उड़ जाती हैं और भीतर आते ही यथास्थान विराजमान हो जाती है। इन्हें आने में

रूकावट न हो, संभवतः इसी से भक्तिन अपना दोनों जून का भोजन सवेरे ही बनाकर ऊपर के आले में रख

देती है और खाते समय चौके का एक कोना धोकर पाक-छूत के सनातन नियम से समझौता कर लेती है।

मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के

सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सद्भाव से

निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहज बुद्धि विस्मित कर देने वाली है।


(क) भक्तिन का स्वभाव परिवार में रहकर कैसा हो गया है ?

उत्तर-विषम परिस्थितिजन्य उसके उग्र, हठी और दुराग्रही स्वभाव के बावजूद भक्तिन के भीतर स्नेह और

सहानुभूति की आभा फूटती रहती है। उसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति उसमें जीवन की सहज मार्मिकता ही

पाते हैं।


(ख) भक्तिन के पास छात्रावास की छात्राएँ क्यों आती हैं?

उत्तर- भक्तिन के पास कोई छात्रा अपनी चाय बनवाने आती है और देहली पर बैठी रहती है. कोई महादेवी जी

के लिए बने नाश्ते को चखकर उसके स्वाद की विवेचना करती रहती है। महादेवी को देखते ही सब छात्राएँ

भाग जाती हैं, उनके जाते ही फिर वापस आ जाती हैं भक्तिन का सहज-स्नेह पाकर चिड़ियों की तरह

चहचहाने लगती हैं।


(ग) छात्राओं के आने में रुकावट न डालने के लिए भक्तिन ने क्या उपाय किया?

उत्तर- छात्राओं के आने में रुकावट न डालने के लिए भक्तिन ने अपने पाक-छूत के नियम से समझौता कर

लिया | भक्तिन अपना दोनों वक्त का खाना बनाकर सुबह ही आले में रख देती और खाते समय चौके का एक

कोना धोकर वहाँ बैठकर खा लिया करती थी ताकि छात्राएँ बिना रोक-टोक के उसके पास आ सकें।


(घ) साहित्यकारों के प्रति भक्तिन के सम्मान का क्या मापदंड है ?

उत्तर-भक्तिन महादेवी के साहित्यिक मित्र के प्रति सद्भाव रखती थी जिसके प्रति महादेवी स्वयं सद्भाव

रखती थी | वह सभी से परिचित हैपर उनके प्रति सम्मान की मात्रा महादेवी जी के सम्मान की मात्रा पर

निर्भर करती है। वह एक अद्भुत ढंग से जान लेती थी कि कौन कितना सम्मान करता है । उसी अनुपात में

उसका प्राप्य उसे देती थी।


12 बाजार-दर्शन

लेखक- जैनेंद्र कुमार

पाठ का सारांश बाजार-दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ अर्थनीति एवं दर्शन से

संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। बाजार का जादू तभी असर करता है जब मन खाली हो

बाजार के जादू को रोकने का उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो।

बाजार की असली कृतार्थता है जरूरत के वक्त काम आना बाजार को वही मनुष्य लाभ दे सकता है जो

वास्तव में अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहता है। जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी

पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए चीजें खरीदते हैं वे बाजार को शैतानी व्यंग्य शक्ति देते हैं। ऐसे लोग

बाजारूपन और कपट बढाते हैं। पैसे की यह व्यंग्य शक्ति व्यक्ति को अपने सगे लोगों के प्रति भी कृतघ्न

बना सकती है । साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्या और तृष्णा से जलने लगता है। दूसरी ओर ऐसा

व्यक्ति जिसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तृष्णा नहीं है, संचय की इच्छा नहीं है वह इस व्यंग्य-शक्ति से

बचा रहता है। भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदर्श ग्राहक और बेचक हैं जिन पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति

का कोई असर नहीं होता | अनेक उदाहरणों के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि एक ओर बाजार,

लालची, असंतोषी और खोखले मन वाले व्यक्तियों को लूटने के लिए है वहीं दूसरी ओर संतोषी मन वालों के

लिए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्षण कोई महत्त्व नहीं रखता।

प्रश्न - पर्चेजिंग पावर किसे कहा गया है, बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- पर्चेजिंग पावर का अर्थ है खरीदने की शक्ति। पर्चेजिंग पावर के घमंड में व्यक्ति दिखावे के लिए

आवश्यकता से अधिक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी व्यंग्य-शक्ति देता है। ऐसे लोग बाजार का

बाजारूपन बढ़ाते हैं।

प्रश्नर -लेखक ने बाजार का जादू किसे कहा है, इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चुंबकीय आकर्षण को बाजार का जादू कहा गया है, यह जादू आंखों की

राह कार्य करता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर

भी खरीदने को विवश हो जाते हैं।

प्रश्न३-आशय स्पष्ट करें।

मन खाली होना

मन भरा होना

मन बंद होना

उत्तर-मन खाली होना-मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। निरुद्देश्य बाजार जाना और

व्यर्थ की चीजों को खरीदकर लाना।

मन भरा होना- मन लक्ष्य से भरा होना। जिसका मन भरा हो वह भलीभांति जानता है कि उसे बाजार से

कौन सी वस्तु खरीदनी है, अपनी आवश्यकता की चीज खरीदकर वह बाजार को सार्थकता प्रदान करता है।

मन बंद होना-मन में किसी भी प्रकार की इच्छान होना अर्थात अपने मन को शून्य कर देना।


 जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। यहां किस बल की चर्चा की

गयी है?

उत्तर- लेखक ने संतोषी स्वभाव के व्यक्ति के आत्मबलकी चर्चा की है। दूसरे शब्दों में यदि मन में संतोष हो

तो व्यक्ति दिखावे और ईर्ष्या की भावना से दूर रहता है उसमें संचय करने की प्रवृत्ति नहीं होती।


प्रश्न- अर्थशाख, अनीतिशास कब बन जाता है?

उत्तर- जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पर्चेचिंग पावर के घमंड में दिखावे के

लिए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए। खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को

ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र,

अनीतिशाख बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है।


प्रश्नद-भगतजी बाजार और समाज को किस प्रकार सार्थकता प्रदान कर रहे हैं?

उत्तर-भगतजी के मन में सांस आकर्षण लिए तृष्णा नहीं है। वे संचय, लालच और दिखावे से

दूर रहते हैं। बाजार और व्यापार उनके लिए आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। भगतजी के मन का

संतोष और निस्पृह भाव, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं।


प्रश्न ७_भगत जी के व्यक्तित्व के सशक्त पहलुओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-निम्नांकित बिंदु उनके व्यक्तित्व के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं।

• पंसारी की दुकान से केवल अपनी जरूरत का सामान (जीरा और नमक) खरीदना।

निश्चित समय पर चूरन बेचने के लिए निकलना।

ज्ह आने की कमाई होते ही चूरन बेचना बंद कर देना।

बचे हुए चूरन को बच्चों को मुफ्त बॉट देना।

सभी काजय-जय राम कहकर स्वागत करना।

बाजार की चमक-दमक से आकर्षित न होना।

समाज को संतोषी जीवन की शिक्षा देना।


प्रश्ना-बाजार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है। जो ग्राहक अपनी

आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण

नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नही करते वे भी बाजार को सार्थक बनाते हैं।


गयांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर

बाजार मे एक जादू है। वह जादू आँख की तरह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का

जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में

जादू का असर खूब होता है । जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार

की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी, तब तो फिर वह मन

किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ. वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने

वाला मालूम होता है पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी-चीजों

की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को जरूर सेंक

मिल जाता है पर इससे अभिमान को गिल्टी की खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के

स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ देगी ?

पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा उपाय है वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो

मिन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए पानी भीतर हो. लू

का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव

बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ न

कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना।


प्रश्न-1 बाजार के जादू को लेखक ने कैसे स्पष्ट किया है?

उत्तर- बाजार के रूप का जादू आँखों की राह से काम करता हुआ हमें आकर्षित करता है। बाजार का जादू ऐसे

चलता है जैसे लोहे के ऊपर चुंबक का जादू चलता है। चमचमाती रोशनी में सजी फैंसी चीजें ग्राहक को

अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इसी चुम्बकीय शक्ति के कारण व्यक्ति फिजूल सामान को भी खरीद लेता है।

प्रश्न-2 जेब भरी हो और मन खाली तो हमारी क्या दशा होती है?

उत्तर-जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जादूखूब असर करता है। मन, खाली है तो

बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण मन तक पहुँच जाता है और उस समय यदि जेब भरी हो तो मन

हमारे नियंत्रण में नहीं रहता।


प्रश्न-3 फैंसी चीजों की बहुतायत का क्या परिणाम होता है?

उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में व्यवधान ही डालती है। थोड़ी देर को अभिमान को जरूर सेंक

मिल जाती है पर दिखावे की प्रवृति में वृद्धि होती है।


प्रश्न-4 जादू की जकड़ से बचने का क्या उपाय है ?

उत्तर- जादू की जकड़ से बचने के लिए एक ही उपाय है, वह यह है कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो,

मन खाली हो तो बाजार मत जाओ।



पहलवान की ढोलक

फणीश्वरनाथ रेणु

पाठ का सारांश-आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पहलवान की ढोलक में कहानी के

पात्र लुहन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास

ने पाल-पोसकर बड़ा किया | उसकी सास को गाँव वाले सताते थे। लोगों से बदला लेने के लिए कुश्ती के

दाँवपेंच सीखकर कसरत करके लुट्टन पहलवान बन गया।

एक बार लुडून श्यामनगर मेला देखने गया जहाँ ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँवपेंच देखकर उसने

जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को चुनौती दे दी | ढोल की आवाज से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दाँव

लगाकर चाँद सिंह को पटककर हरा दिया और राज पहलवान बन गया | उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल

गयी| १५ वर्षों तक पहलवान अजेय बना रहा। उसके दो पुत्र थे। लुट्टन ने दोनों बेटों को भी पहलवानी के गुर

सिखाए। राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की रेस का शौक था।

मैनेजर ने नये राजा को भड़काया, पहलवान और उसके दोनों बेटों के भोजनखर्च को भयानक और

फिजूलखर्च बताया, फ़लस्वरूप नए राजा ने कुश्ती को बंद करवा दिया और पहलवान लुट्टनसिंह को उसके

दोनों बेटों के साथ महल से निकाल दिया।

राजदरबार से निकाल दिए जाने के बाद लुहन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव में झोपड़ी बनाकर

रहने लगा और गाँव के लड़कों को कुश्ती सिखाने लगा लुट्टन का स्कूल ज्यादा दिन नहीं चला और

जीविकोपार्जन के लिए उसके दोनों बेटों को मजदूरी करनी पड़ी इसी दौरान गाँव में अकाल और महामारी

के कारण प्रतिदिन लाशें उठने लगी पहलवान महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से

लड़ने की संजीवनी ताकत देता था। एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए

पर उस रात भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधा रहा था | इस घटना के चार-पाँच दिन

बाद पहलवान की भी मौत हो जाती है।

पहलवान की ढोलक, व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। इस

कहानी में लुट्टन नाम के पहलवान की हिम्मत और जिजीविषा का वर्णन किया गया है। भूख और

महामारी, अजेय लुट्टन की पहलवानी को फटे ढोल में बदल देते हैं। इस करुण त्रासदी में पहलवान लुट्टन

कई सवाल छोड़ जाता है कि कला का कोई स्वतंत्र अस्तित्व है या कला केवल व्यवस्था की मोहताज है?


प्रश्ना- लुहन को पहलवान बनने की प्रेरणा कैसे मिली?

उत्तर- लुट्टन जब नौ साल का था तो उसके माता-पिता का देहांत हो गया था। सौभाग्य से उसकी शादी हो

चुकी थी| अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया | उसकी सास को गाँव वाले

परेशान करते थे लोगों से बदला लेने के लिए उसने पहलवान बनने की ठानी धारोष्ण दूध पीकर, कसरत

कर उसने अपना बदन गठीला और ताकतवर बना लिया | कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर लुङ्कन पहलवान बन

गया।


प्रश्न- रात के भयानक सन्नाटे में लुहन की ढोलक क्या करिश्मा करती थी?

उत्तर- रात के भयानक सन्नाटे मेलुहन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को हिम्मत बंधाती थी । ढोलक

की आवाज से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली

सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल

खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, बीमार-मृतपाय गाँववालों की नसों में

संजीवनी शक्ति को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी।


प्रश्न:- लुहन ने सर्वाधिक हिम्मत कब दिखाई ?

उत्तर- लुट्टन सिंह ने सर्वाधिक हिम्मत तब दिखाई जब दोनों बेटों की मृत्यु पर वह रोया नहीं बल्कि

हिम्मत से काम लेकर अकेले उनका अंतिम संस्कार किया यही नहीं, जिस दिन पहलवान के दोनों बेटे

महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधा

रहा था श्यामनगर के दंगल में पूरा जनसमुदाय चाँद सिंह के पक्ष में था चाँद सिंह को हराते समय लुटून ने

हिम्मत दिखाई और बिना हताश हुए दंगल में चाँद सिंह को चित कर दिया।


प्रश्न- लुहन सिंह राज पहलवान कैसे बना?

उत्तर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने दंगल का आयोजन किया। पहलवान लुहन सिंह

भी दंगल देखने पहुंचा । चांदसिंह नामक पहलवान जो शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध था, कोई भी पहलवान

उससे भिड़ने की हिम्मत नहीं करता था। चाँदसिंह अखाड़े में अकेला गरज रहा था। लुहन सिंह ने चाँदसिंह

को चुनौती दे दी और चॉदसिंह से भिड़ गया।दोल की आवाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर

गया।उसने चाँदसिंह को चारों खाने चित कर दिया। राजासाहब ने लुटून की वीरता से प्रभावित होकर उसे

राजपहलवान बना दिया।


प्रश्न5- पहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी?

उत्तर- पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि उसे चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह जिंदगी में कभी

चित नहीं हुआ था। उसकी दूसरी इच्छा थी कि उसकी चिता को आग देते समय ढोल अवश्य बजाया जाए।

प्रश्न:- ढोल की आवाज और लुट्टन के मैं दाँवपंच संबंध बताइए-

उत्तर- ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँवपेंच में संबंध.

• चट धा, गिड़ धा→ आजा भिड़ जा।

चटाक चट धा→ उठाकर पटक दे।

चट गिड़धा मत डरना।

धाक धिना तिरकट तिना-दॉव काटो, बाहर हो जाओ।

धिना धिना, धिक धिना-चित करो


गद्यांश-आधारित अर्यग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर

अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी | निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को अपने हदय में

ही बल पूर्वक दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं

आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में

ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे | सियारों

का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज रात की निस्तब्धता को भंग करती थी | गाँव की झोपड़ियों से

कराहने और कै करने की आवाज, हरे राम हे भगवान की टेर सुनाई पड़ती थी बच्चे भी निर्बल कंठों से माँ-

मों पुकारकर रो पड़ते थे।

(क)अंधेरी रात को ऑसू बहाते हुए क्यों दिखाया गया है ?

उत्तर- गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था | महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे चारों ओर

मौत का सनाटा छाया था इसलिए अँधेरी रात भी चुपचाप आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी|

(ख) तारे के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर-तारे के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि अकाल और महामारी से त्रस्त गाँव वालों की पीड़ा को

दूर करने वाला कोई नहीं था | प्रकृति भी गाँव वालों के दुःख से दुखी थी| आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक

तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी |

(ग) रात की निस्तब्धता को कौन भंग करता था ?

उत्तर- सियारों की चीख-पुकार, पेचक की डरावनी आवाजें और कुत्तों का सामूहिक रुदन मिलकर रात के

सन्नाटे को भंग करते थे।

(घ)झोपड़ियों से कैसी आवाजें आ रही हैं और क्यों?

उत्तर- झोपड़ियों से रोगियों के कराहने, कै करने और रोने की आवाजें आ रही हैं क्योंकि गाँव के लोग

मलेरिया और हैजे से पीड़ित थे | अकाल के कारण अन्न की कमी हो गयी थी। औषधि और पथ्य न मिलने

के कारण लोगों की हालत इतनी बुरी थी कि कोई भगवान को पुकार लगाता था तो कोई दुर्बल कंठ से माँ-

माँ पुकारता था।


अर्द्धवार्षिक परीक्षा 12 वीं हिन्दी मे कितना सिलेबस आएगा?? 

सभी छात्रों के मन में यह सवाल है कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा मे कितना सिलेबस आएगा जैसे कि आप सभी को पता होगा कि माध्यमिक शिक्षा मंडल मध्य प्रदेश ने हाल ही में एक नोटिस जारी किया गया है जिसमें बताया गया है कि कक्षा 9 वीं से लेकर 12 वीं तक की सभी कक्षों की अर्द्धवार्षिक परीक्षा 29 नवंबर में होंगी अब हम बात करे कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा मे कितना सिलेबस आएगा तो आप सभी कक्षाओं के सिलेबस को आसानी से हमारी वेबसाइट के माध्यम से डाउनलोड कर सकते हैं 



कक्षा 12वीं हिन्दी अर्द्धवार्षिक परीक्षा का 2021 पैटर्न कैसा रहेगा?? 


अर्द्धवार्षिक परीक्षा मे पैटर्न प्रश्न क्रमांक 1 से 5 तक 32 वस्तुनिष्ठ प्रश्न होंगे।


सही विकल्प 06 अंक

रिक्त स्थान 07 अंक

सही जोड़ी 06 अंक

एक वाक्य में उत्तर 07 अंक

सत्य असत्य 06 अंक


संबंधी प्रश्न होंगे। प्रत्येक प्रश्न पर 01 अंक निर्धारित है। वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को छोड़कर सभी प्रश्नों में आंतरिक विकल्प का प्रावधान होगा। यह विकल्प समान इकाई/उप इकाई से तथा समान कठिनाई स्तर वाले होंगे। 


 इन प्रश्नों की उत्तर सीमा निम्नानुसार होगी


अतिलघुउत्तरीय प्रश्न-लगभग 30 शब्द

लघुउत्तरीय प्रश्न -  लगभग 75 शब्द

विश्लेषणात्मक - - लगभग 120 शब्द

40 प्रतिशत वस्तुनिष्ठ प्रश्न, 

40 प्रतिशत पाठ्यवस्तु पर आधारित प्रश्न

20 प्रतिशत विश्लेषणात्मक प्रश्न होगें।


सत्र 2021-22 हेतु कम किये गये पाठ्यक्रम से प्रश्न पत्र में प्रश्न न दिये जाये। पाठ्यवस्तु पर आधारित प्रायोजना कार्य हेतु 20 अंक आवंटित है।



अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंक इतने अधिक महत्वपूर्ण क्यों है? 

 अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंक इतने अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंक आपकी वार्षिक परीक्षा मे भी जुड़ते है 





                         

 
12th hindi half yearly paper solution
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