12th class biology assiegnment 2 september solution pdf download|cg board assienment 2 12vi jivvigyan pdf |

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Cg board assignment -हैलो दोस्तों आपका स्वागत है | हमारे इस वेबसाइट में और आज के इस आर्टिकल में आपको cg board assignment-2 class 12th के सभी विषयों के उत्तर  हिन्दी एवं अंग्रेजी माध्यम में  दोनों मे उपलब्ध कराए जाएंगे |आप सभी को यह पता होगा कि छत्तीसगढ़ बोर्ड ने पिछले साल से यह असाइनमेंट ला रही है |इस वर्ष भी बोर्ड  कक्षा 10 वी एव 12 वीं के छः असाइनमेंट को सम्पन्न कराए गा| सभी विद्यार्थियों को यह असाइनमेंट बनना जरूरी है | हमारी वेबसाइट के माध्यम से आपको असाइनमेंट के उत्तर pdf formet me उपलब्ध कराए जा रहे हैं |


छत्तीसगढ़ बोर्ड

सितंबर असाइनमेंट - 2

सत्र- 2021-22

कक्षा-12वीं

विषय - जीव विज्ञान

प्रश्न-1 यौन संचारित रोग से आप क्या समझते हैं ? किन्ही दो यौन संचारित रोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-1. यौन संचारित बीमारी को एसटीडी रोग के नाम से जाना जाता है यह रोग वांट सम पर के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे में पारित होने वाली स्थिति को संदर्भित करने के लिए किया जाता है एसटीडी रोग एवं संबंधित रोग है जो किसी भी महिला या पुरुष को हो सकता है यदि आप एसटीडी वाले किसी व्यक्ति के साथ और सुरक्षित योनि गोदा या मुख मैथुन कर संपर्क में आए तो एसटीडी रोग हो सकता है। कई अलग-अलग प्रकार के संक्रमण यौन संचारित रोग पैदा कर सकते हैं । गोनोरिया - गोनोरिया नामक जीवाणु महिला और पुरुष को तेजी से संक्रमित करता है यह यौन संचारित रोग मुख्य है जो मौखिक सेक्स करने से अधिक होता है संक्रमण होने से दर्द सूजन की समस्या होती है इस एरिया गोनोरिया के कारण इसे सुजाक भी कहा जाता है या गले आंखों गर्भाशय कूदा मूत्र

मार्ग में संक्रमण फैला सकता है। संचारित रोग एचपीवी - एचपीवी यौन संचारित संक्रमण होता है। एचपीवी

एक बहुत ही सामान्य वायरस है और ये 100 से अधिक प्रकार के होते हैं। संक्रमण आमतौर पर हमारे शरीर में ही मौजूद रहते हैं, क्योंकि हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र आमतौर पर संक्रमण के बाद एक से दो वर्ष में एचपीवी को साफ कर सकता है। विभिन्न प्रकार के एचपीवी से विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं


प्रश्न-2 अपूर्ण प्रभाविता एवं सह प्रभाविता में अंतर लिखिए।

उत्तर-2 (अ) सह-प्रभाविता - जब किसी कारक या जीन के युग्मविकल्पी में कोई भी कारक प्रभावी या अप्रभावी न होकर, मिश्रित रूप से प्रभाव डालते हैं, तो इसे

सहप्रभाविता (co-dominance) कहते हैं। इसके फलस्वरूप F1 पीढ़ी दोनों जनकों की मध्यवर्ती होती है। उदाहरण - मनुष्य में तीन प्रकार के रुधिर वर्ग

होते हैं-A, B, 0, जिनका निर्धारण विभिन्न प्रकार की लाल रुधिराणु कोशिकाएँ करती हैं। इन रुधिर वर्गों का नियन्त्रण ''' जीन करता है जिसके तीन युग्मविकल्पी होते हैं-IA व Ib साथ-साथ उपस्थित सहप्रभावी होते हैं व AB रुधिर वर्ग बनाते हैं।


(ब) विपर्यासी लक्षणों के युग्म में, एक लक्षण दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी होता है। यह घटना अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है।

 उदाहरण -

मिराबिलिस जलापा या गुल गुलाबाँस के पौधे में लाल पुष्प व सफेद पुष्प युक्त पौधों के मध्य संकरण कराने पर, F1 पीढ़ी में सभी फूल लाल मा सफेद न होकर,

गुलाबी रंग के होते हैं। F2 पीढ़ी में 1 लाल, 2 गुलाबी व 1 सफेद पुष्प (1 : 2 : 1) युक्त पौधे प्राप्त होते हैं।


उत्तर-3    R-h कारक एक विशेष प्रकार का प्रोटीन है, जो एंटीजेन के रूप में मानव रुधिर में

पाया जाता है, जिस व्यक्ति में यह पाया जाता है उसे Rh+ तथा जिसमे नहीं पाया जाता है उसे

Rh- कहते है। जब व्यक्ति का रुधिर Rh+ व्यक्ति के संपर्क में रक्तदान या गर्भधारण के समय आता है, तो बहुत अधिक कठिनाइयाँ पैदा हो जाती है और कभी-कभी किसी वास्तु की मृत्यु भी हो जाती है

अथार्त यह अनुवांशिक अकर्मण्यता को प्रदर्शित करता है। अतः रक्तदान तथा विवाह के समय कारक पर विशेष ध्यान देना चाहिए।




cg board assignment 2





प्रश्न-4 एक संकर क्रास किसे कहते हैं? 12 पीढ़ी में कितने प्रकार के फिनोटाइप और जीनोटाइप बनेंगे? चेकर बोर्ड की सहायता से स्पष्ट करें।


उत्तर-4- एक ही लक्षण के लिए विपर्यासी पौधे के मध्य संकरण एक संकर क्रॉस कहलाता है। जैसे मटर के लंबे (T) व बौने (t) पौधे के मध्य कराया गया शंकरण

F1 पीढ़ी में सभी पौधे लंबे किंतु विषमयुगमजी (Tt) होते हैं। F1 पीढ़ी में लंबे पन के लिए उत्तरदाई कारक I, बौने पन के कारक पर प्रभावी होता है । अतः F1 पीढ़ी में उपस्थित होते हुए भी स्वयं को प्रकट नहीं कर पाता

है सभी पौधे लंबे होते हैं. अतः 1 लक्षण को नियंत्रित करने वाले कारक युग्म में जब एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी होता है तो इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं।


प्रश्न - निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए


1-एलील

उत्तर

.एक ही गुण के विभिन्न विपर्यायी रूपों को प्रकट करने वाले कारकों को एक- दूसरे का एलील कहते है।

2-समयुग्मकी

उत्तर -2-

समयुग्मजः किसी जीन या गुण को समान एलीलि कोड करने वाले दो के जोड़े।


3. टेस्ट क्रॉस

. टेस्ट क्रॉस- F1 पीढ़ी के जीवों का अप्रभावी जनक (Recessive Parents) के साथ संकरण कराते हैं उसे परीक्षार्थ संकरण ( Test cross ) कहते हैं । ऐसे संकरण से होने वाली संतति 50 % में शुद्ध अप्रभावी तथा 50 % प्रभावी ( संकर गुण लिए हुए) प्राप्त  होते हैं ।

  उदाहरण के लिए यदि पीढ़ी के लाल फूलों ( संकर ) का संकरण अप्रभावी जनक सफेद फूलों (शुद्ध) से करते हैं । तब हमे फीनोटाइप तथा जीनोटाइप दोनों ही प्रकार से 1:1 के अनुपात में लाल तथा सफेद फूलों वाले पौधे मिलते हैं


प्रश्न 6- गुणसूत्रों की संरचना में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों या विपथनों का वर्णन कीजिए।


उत्तर-

गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन - जीवों में होने वाले अचानक परिवर्तन को उत्परिवर्तन कहते हैं गुणसूत्र की संरचना तथा संख्या में परिवर्तन होने से गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन होता है,

यह दो प्रकार से होते है।

(A) संख्यात्मक परिवर्तन (Numerical mutation) - इस प्रकार का उत्परिवर्तन. गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन होने के कारण होता है।


1 जब गुणसूत्र के सेट में परिवर्तन हो - जब गुणसूत्र के एक या एक से अधिक सेटों की वृद्धि हो जाती है , तो इसे बहुगुणिता (Polyploids ) कहते हैं । जब गुणसूत्र के एक सेट में कमी हो जाती है , तो इसे मूल अल्पसंख्यता ( Laploidy ) कहते हैं । मनुष्य में

बहुगुणिता होती हैं जब 66 + XXY गुणसूत्र होते हैं, तो इसे युक्तांगुली दशा (Syndactyly) कहते हैं । इस रोग में बच्चों का मस्तिष्क असामान्य , हाथ पैर की

उंगुलियाँ जुडी , जबड़ा छोटा , शरीर स्थूल होता है । इनकी उम्र अत्यन्त कम और सीधे

मृत्यु जो जाती है।


2 जब गुणसूत्रों के सेट में परिवर्तन हो - जब गुणसूत्र के सेट में एक या अधिक गुणसूत्रों

की वृद्धि हो जाती है, तो इसे बहुसूत्रता ( Polysomy) कहते हैं । जैसे -

2n+1, 2n-1


इत्यादि । जब गुणसूत्र के एक या अधिक गुणसूत्र कम हो जाते हैं, तो इसे अवसूत्रता ( हय्पोप्लोइडी) कहते हैं।

जैसे- 2n-1,2n-2

लिंग गुणसूत्र में वृद्धि या कमी के कारण टर्नर सिंड्रोम एवं क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम उत्पन्न होता है । आटोसोम में गुणसूत्र की कमी के कारण डाऊन सिंड्रोम जैसी

विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।

(i) क्लाइनफेल्टर सिण्ड्रोम एक अरिक्त गुणसूत्र के कारण होता है । ऐसे नर मनुष्यों में एक 'X' गुणसूत्र अधिक पाया जाता है । अर्थात इनमे कुल 47 गुणसूत्र 44 आटोसोम + xxy लिंग गुणसूत्र होते हैं ।

(ii) टर्नर सिण्ड्रोम में 45 गुणसूत्र (44 + X ) होते है । इससे ग्रसित मादा में अण्डाशय विकसित नहीं होता अर्थात बंधय होती है मानव में अलिंगी गुणसूत्र की वृद्धि के कारण होती हैं -

(i) मंगोलियन जड़ता ( Mongolian idiocy) - 21 वें जोड़ी क्रोमोसोम में ट्राइसोमी (Trisomy) होती है।


(ii) 18 - ट्राइसोमी (18 - Trisomy) - 18 वें जोड़ी का क्रोमोसोम छोटा एवं कमजोर होता है । मस्तिष्क , हाथ एवं पैर का विकास शिशु में नहीं होता है ।


(iii) 13 - ट्राइसोमी ( 13 - Trisomy) - 13 वें जोड़ी गुणसूत्र में असामान्यता उत्पन्न होती है । शिशु में मस्तिष्क , हाथ एवं आँख कम विकसित होते हैं ।

(B) संरचनात्मक उत्परिवर्तन ( Structural mutation) - इस प्रकार का उत्परिवर्तन गुणसूत्र की आन्तरिक संरचना में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है  ये

निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं।


1 अल्पता (Deficiency) - गुणसूत्र के एक खण्ड का लोप हो जाता है जिससे जीन की संख्या में कमी हो जाती

2 गुणन ( Duplication ) - इस गुणसूत्र का एक खण्ड आ करके जुड़ जाता। जिससे जीन की संख्या में वृद्धि हो जाती है ।


3 स्थानान्तरण ( Translocation) - दो असमजात गुणसूत्रों के मध्य जींस के आदान - प्रदान के कारण होता है ।


4 प्रतिलोमीकरण ( Inversion) - गुणसूत्र का कुछ भाग जुड़कर पुर्नविन्यास होता है जिस कारण जीन के विन्यास में परिवर्तन हो जाता है।






Cg board assignment-2 solution pdf -  मुझे उम्मीद  है कि आपको assignment-2  Solution की pdf आपको मिल गई है | आपको जल्द ही सभी विषयों की भी solution सहित pdf मिल जाएगी | अगर आपको अभी भी pdf download करने मे कोई भी समस्या आ रही है तो आप हमे comment कर सकते हैं |





 




















 




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