12th class biology trimasik pariksha solution pdf download |

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बहुभ्रूणता (Polyembryony)क्या है 

:बहुभ्रूणता (Polyembryony)-जब एक ही बीज में एक से अधिक भूण पैदा होजाते है तो इस प्रजनन या दशा को बहुभ्रूणाता कहते है। बहुभ्रूणाता कहते है।


संयुग्मन क्या है 

प्रजनन की वह क्रिया जिसमें दो युग्मकों के मिलने से बनी रचना युग्मज द्वारा नये जीव की उत्पत्ति होती

है, लैंगिक जनन कहलाती है। यदि युग्मक समान आकृति वाले होते हैं तो उसे समयुग्मक कहते हैं।

समयुग्मकों के संयोग को संयुग्मन कहते हैं।


क्या है हीमोफीलिया


ये एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें खून का थक्का बनना बंद हो जाता है. जब शरीर का

कोई हिस्सा कट जाता है तो खून में थक्के बनाने के लिए ज़रूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं. इससे खून बहना अपने आप रुक जाता है.

 अग्रपिंडक (एक्रोसोम) के कार्य- एक्रोसोम में विशेष प्रकार के एंजाइम पाए जाते है जो निषेचन के दौरान अंडाणु कलाओं (Egg membranes) को घोलने का कार्य करती है अर्थात अंडाणु के निषेचन में सहायक करता है।


 मेण्डल ने अपने प्रयोगों में मटर

उत्तर  मेण्डल ने अपने आशिक योगो के लिए मटर के पौधो का चयन   किया

० मटर का जतिन चक पोला होता जिससे प्रयोग करने मे का समय लगता है।

इसने ए. परागण द्वारा Kलता पूर्वक

संकरण किया जा सकता है मटर में काफी स्पष्ट विपर्यायी या विपरीत लका होते है सामान्यतः मटर ने स्व- पागा एवं निपन होता है। जिसके कारण पॉचे अमयुग्मजी होते है। और पीढी - पर पीडी खरे पौधे शुद्ध लपण वाले बने रहते है। संकग से प्राप्त सफर पॉचे पूर्णत: जननसम होते है।


एक संकर क्रॉस : इस प्रकार के प्रसंकरण जिसमें एक ही जोड़ी लक्षणों को लिया जाता है एक संकर क्रॉस कहलाता है वसंतति को संकर (Hybrid) कहते हैं, 3 प्रभावी : 1 अप्रभावी का जीवविज्ञान

 जनन एवं आनुवंशिकी टिप्पणी अनुपात

(फीनोटाइपिक अनुपात) जोकि 5 पीढ़ी से एक संकर संकरण के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है एक संकर ...

 एक संकर संकरण के प्रयोग में जब एक ही लक्षण के दो विरोधी गुणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता हैं,

तो प्रथम पीढ़ी (F1) में वही गुण प्रदर्शित होता हैं जो प्रभावी होता हैं | इसी को प्रभाविता का नियम कहते हैं |

इस क्रिया में जो गुण या कारक प्रकट होता हैं या जो दूसरे गुण को प्रदर्शित नही होने देता , उसेप्रभावी गुण या कारक (Dominant factor) कहते हैं | जबकि वह गुण जो प्रकट नही होता उसे अप्रभावी गुण या कारक

(Recessive factor) कहते हैं।


उदहारण -

 मेंण्डल ने नियम की पुष्टि हेतु जब मटर के समयुग्मजी लम्बे (TT) पौधे तथा समयुग्मजी बौने (tt)

पौधे के बीच संकरण कराया जाता हैं तो संकरण के फलस्वरूप प्रथम पीढ़ी (F1) में जो पौधे प्राप्त हुए वे सभी विसमयुग्मजी लम्बे (Tt) थे | जो प्रभावित के नियम की पुष्टि करता हैं | तथा F1 पीढ़ी में लम्बेपण का लक्षण प्रदर्शित हुआ जिसे प्रभावी गुण या लक्षण कहा गया जबकि जो लक्षण प्रदर्शित नही हुआ अर्थात बौनेपन के लक्षण को अप्रभावी गुण या लक्षण कहा गया |इससे स्पष्ट होता हैं कि प्रत्येक जीन में अनेक जोड़ी एलील्स होते हैं तथा उनमे एक प्रभावी एवं दूसरा अप्रभावी होता हैं | प्रभावी विशेषता समयुग्मजी (TT) और विसमयुग्मजी (Tt) दोनों परिस्थितियों में प्रकट होती हैं | जबकि अप्रभावी विशेषता केवल समयुग्मजी (tt) अवस्था में ही प्रकट होती हैं।



. एप्नियोसेण्टेसिस क्या है -

उत्तर-एम्नियोसेण्टेसिस भ्रूण परीक्षण की एक तकनीक है जिसमें सर्जिकल सुई द्वारा मादा के गर्भाशय

एम्नियोटिक द्रव को शरीर से बाहर निकाला जाता है और एम्नियोटिक द्रव में उपस्थित फोयटस कोशा का

वर्धन किया जाता है और इसका गुणसूत्रीय परीक्षण करके निम्न बातों का पता लगाया जाता है-

(1) गुणसूत्रीय असामान्यता, जैसे-डाउन सिण्ड्रोम, फिलोडेल्फिया सिण्ड्रोम एवं एडवर्ड सिण्ड्रोम।

(2) उपापचयी अनियमितताएँ, जैसे- PKU, क्रिटेनिज्म, एल्केप्टोन्यूरिया।

(3) लिंग भ्रूण के परीक्षण में इसका उपयोग किया जाता है।








 एम्नियोसेन्टेसिस विधि को समझाइए। (2020)

उत्तर-उल्थवेधन या एग्नियोसेन्टेसिस (Amniocentesis) भ्रूणीय विकार जाँच करने

की एक विधि है। इस विधि में एक सिरिंज की सहायता से भ्रूण के चारों ओर उपस्थित उल्य

द्रव (एग्नियोटिक फ्लुड) की कुछ मात्रा निकाली जाती है। इसमें उपस्थित कोशिकाओं के

गुणसूत्रीय परीक्षण से भ्रूण के किसी आनुवंशिक विकार का पता लगाया जाता है। चूंकि

गुणसूत्रीय जाँच से भ्रूण के लिंग के बारे में भी सहज जानकारी हो जाती है, अत: कुछ लोगों

ने इस तकनीक का दुरुपयोग प्रारम्भ कर दिया। इसका प्रयोग कन्या भ्रूण हत्या (Female foeticide) जैसे घृणित कार्य के लिए किया जाने लगा।

भारत में भ्रूण का लिंग ज्ञात करना कानूनी रूप से प्रतिबन्धित है अत: लिंग जाँच करने

के लिए उल्बवेधन तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

देश में घटते लिंग अनुपात, बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याओं जैसे अमानवीय कृत्यों को

दृष्टिगत रखते हुए लिंग जाँच हेतु उल्यवेधन पर प्रतिबन्ध पूर्णतः आवश्यक है। सभ्य समाज

में इसकी आज्ञा नहीं दी जा सकती है।

यूक्रोमैटिन की परिभाषा

क्रोमोसोम का वह हिस्सा, जो जीन सांद्रता में समृद्ध होता है और क्रोमेटिन के शिथिल रूप से पैक होता है, उसे यूक्रोमैटिन कहा जाता है। वे प्रतिलेखन के दौरान सक्रिय हैं। यूक्रोमैटिन डायनामिक जीनोम के अधिकतम हिस्से को नाभिक के अंदरूनी हिस्से में शामिल करता है और कहा जाता है कि

यूक्रोमैटिन में पूरे मानव जीनोम का लगभग 90% हिस्सा होता है

प्रश्न 4. बैगिंग (बोरा वस्त्रावरण) या थैली तकनीक क्या है ? पादप प्रजनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है?

उत्तर-परम्परागत रूप से पादप प्रजनन कृत्रिम संकरण (Artificial hybridization)

तकनीक द्वारा किया जाता है। इस तकनीक में दो वांछित गुणों वाले जनों को नर व मादा

जनक के रूप में प्रयोग कर उनके बीच संकरण कराया जाता है।

इस तकनीक में ही विपुंसन (emasculation) तथा बैगिंग (bagging) जैसे पदों का

प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में मादा जनक के रूप में जिस पौधे का चयन किया जाता है उसके पुष्प

को विपुंसन के बाद वटर पेपर से बन एक छोटी थैली से ढक दिया जाता है। यही प्रक्रिया

बैगिंग कहलाती है। एकलिंगी मादा पौधे में बिना विपुंसन के बैगिंग की जाती है। बैगिंग, मादा

पौधे के पुष्प के वर्तिकान को किसी अवांछित पराग कण से परागित नहीं होने देती। वांछित

परागकण द्वारा परागित करने के बाद इस मादा पुष्प पर पुन:-बैगिंग (rebagging) की जाती

है। यह अवांछित परागण रोकने का उपाय मात्र है। चयनित पादप प्रजनन तकनीक में वांछित संकरण उत्पाद ही प्राप्त करने के लिए बैगिंग एक आवश्यक चरण है।


 जनसँख्या विस्फोट निम्न कारण हैं (Causes of Population Explosion)

1. अशिक्षाः जनगणना 2011 के अनुसार भारत की

जनसंख्या अभी भी केवल 74% ही शिक्षित है और गावों में तो यह आंकड़ा और भी कम है. इस कारण जनसंख्या को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां हैं. गरीब लोग एक अतिरिक्त  को कमाई का अतिरिक्त हाथ मानते हैं.

2. परिवार नियोजन के प्रति उदासीनताः कुछ लोग तो

परिवार नियोजन के साधनों को जानते भी नहीं हैं और कुछ लोग इन साधनों का प्रयोग करना अपने धर्म के खिलाफ मानते हैं जबकि कुछ लोग इन साधनों को खरीद नहीं सकते हैं हालाँकि ये साधन सरकार के द्वारा फ्री में दिए जाते हैं फिर भी इस्तेमाल नही करते हैं.

3. मनोरंजन के साधनों की कमी: देश के बहुत से गावों में आज भी मनोरंजन के साधनों की कमी है जिसके कारण. लोग सेक्स को मनोरंजन का साधन मानते हैं और परिवार बढ़ाते रहते हैं.

4. अंधविश्वास: शिक्षा की कमी के कारण लोग परिवार

नियोजन के उपायों को ठीक से नहीं अपनाते हैं. जैसे भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग यह मानते हैं की पुरुष नशबंदी कराने से व्यक्ति की ताकत कम हो जाती है और वह मेहनत का काम करने लायक नहीं रहता है.

5. सरकार की गलत नीतियां: आजकल सरकार लोगों को 1 बच्चे के जन्म पर 6 हजार और दूसरे बच्चे के जन्म पर भी 6 हजार रुपये देती है. अब ऐसी नीतियों के माहौल में परिवार नियोजन कैसे सफल होगा? ज्ञातव्य है कि चीन ने अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए 1 बच्चे की नीति को कठोरता से लागू किया था और जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पा लिया है, लेकिन इसका भारत उल्टा कर रहा है. मेरे हिसाब से सरकार को 6 हजार रुपये नकद ना देकर पोषण युक्त खाद्य सामाग्री फ्री में देनी चाहिए ताकि बच्चे स्वस्थ पैदा हों.

 (1) अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) अपूर्ण प्रभाविता वंशागति का

वह प्रकारे हाजसमें किसी विषययुग्मजी अवस्था में एक एलील अपना पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित नहीं

कर पाता। इसके फलस्वरूप दोनों जनकों के बीच का एक नया फीनोटाइप बनता है। निम्न

दो पादपों में अपूर्ण प्रभावित को आसानी से देखा जा सकता है—फोर ओ क्लॉक प्लाण्ट या

मिराविलिस जलापा, स्नेपड्रेगन या एंटीराइनम मेजस इनमें शुद्ध लाल रंग के पुष्प वाले (RR)

पौधों का संकरण सफेद रंग (m) के पुष्प वाले पौधों से कराने पर गुलाबी रंग (Rr) के पुष्प

वाले पौधे प्राप्त होते हैं। लेकिन अपूर्ण प्रभाविता समिश्र वंशागति या ब्लेडिंग इनहेरिटंस नहीं

है क्योंकि , पौधों को स्वपरागित करने पर F, पीढ़ी में फीनोटिपिक अनुपात | 2:1 प्राप्त होता है। जो जीनोटिपिक अनुपात का भी प्रतिनिधित्व करता है। अपूर्ण प्रभाविता में लाल रंग के निर्माण से सम्बन्धित एलील के किसी परिवर्तन (त्रुटि) के कारण इससे बना एंजाइम पूर्ण रूप से क्रियाशील नहीं होता।


DNA के द्विकुण्डलीय मॉडल की संरचना को स्पष्ट कीजिए। (2019)

उत्तर—वाटसन व क्रिक द्वारा प्रस्तावित डी. एन. ए, द्विकुण्डली के प्रमुख लक्षण-

(1) प्रत्येक डी. एन. ए. अणु दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं से मिलकर बना होता

है। इस श्रृंखला में रीढ़ फॉस्फेट-शर्करा-फॉस्फेट अणुओं की बनी होती है तथा क्षारक दोनों के बीच में अन्दर की ओर निकले रहते हैं (किसी सीढ़ी की तरह)।

(ii) दोनों शृंखलाएँ एक-दूसरे के प्रति समानान्तर (Antiparallel) होती हैं। इसका अर्थ यह है कि, एक श्रृंखला की ध्रुवता यदि → 3' है तो दूसरी की 35 होती है (दोनों श्रृंखलाओं की दिशा विपरीत होती है)।

(ii) दोनों शृंखलाएं आपस में कुण्डलित होकर विकुण्डली बनाती है, जिनमें प्रत्येक खला दक्षिणावर्ती (right handed) कुण्डलित होती है।

(iv) दोनों शृंखलाओं के क्षारक आपस में हाइड्रोजन बन्न द्वारा जुड़े होते हैं। प्रत्येक

क्षारक युग्म में एक प्यूरीन व एक पिरीमिडीन होता है। एक रज्जुक का एडीनीन दूसरे राजुक

के थायमीन के साथ दो हाइड्रोजन बन्ध द्वारा तथा ग्वानीन, साइटोसीन के साथ तीन हाइड्रोजन

नयों द्वारा जुड़ा होता है। अर्थात् हाइड्रोजन बम सदा A-T.T-A.C-GG= C के रूप

में ही, बिना किसी अपवाद के पाए जाते हैं।


चित्र 6.6. वाटसन व क्रिक-DNA द्विकुण्डली मॉडल

इस क्षारक पूरकता के नियम के कारण दोनों रज्जुकों के बीच की दूरी समान बनी

रहती है।

(v) डी. एन. ए. अणु की चौड़ाई हमेशा स्थिर तथा एक क्षारक युग्म (एक प्यूरीन •

एक पिरीमिटीन) की चौड़ाई के बराबर होती है।

(vi) द्विकुण्डली के एक पूर्ण मोड़ की लम्बाई 34m होती है तथा प्रत्येक घुमाय में

10 सारक युग्म पाए जाते हैं।

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